बांग्ला लघुकथाः
एलियन की आँखों से भारत
- शमीम अख्तर बानो
मूल बांग्ला से अनुवाद - रतन चंद रत्नेश
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उड़न-तश्तरी पर सवार होकर एक एलियन दूसरे ग्रह से इस धरती पर आया। उसे यहाँ विभिन्न देशों की जानकारी प्राप्त करने के लिए भेजा गया था।
एलियन पहले अमेरिका गया। वहाँ के वासिंदों से पूछने पर सबने एक ही बात कही कि वे अमेरिकन हैं। उसके बाद पाकिस्तान जाने पर वहाँ  भी यही जवाब मिला - मैं पाकिस्तानी हूँ।इसी तरह बांग्लादेश के लोगों ने उस प्राणी को अपना परिचय बांग्लादेशी के रूप में दिया।
फिर एलियन भारत आया। विभिन्न राज्यों में जाने पर उसे अलग-अलग परियच मिला। किसी ने कहा, मैं गुजराती हूँ  तो किसी ने खुद को बंगाली बताया। किसी ने अपना परिचय बिहारीके रूप में दिया। इस देश में किसी व्यक्ति ने उसे अपना परिचय यह कहकर नहीं दिया कि मैं भारतीय या इंडियन हूँ ।
अपने ग्रह में लौटकर ने अपनी रिपोर्ट सौंपते हुए लिखा - पृथ्वी पर इंडिया नाम का एक अद्भुत देश है, जहाँ एक भी इंडियन ढूंढे नहीं मिलता।




























































































लुटेरे

हम दोनों ने अपनी-अपनी पत्नियों और बच्चों को होटल में ही रहने दिया और समुद्र के किनारे आ गए। दूर-दूर तक फैला समुद्र का अनंत विस्तार। शहर की भागदौड़ भरी व्यस्त दुनिया से जुदा यह सुकून की दुनिया थी और पिछले एक सप्ताह से हम यहां के एक होटल में ठहरे थे। आखिर कल उसी भीड़ में फिर से लौट जाना था।
सागर किनारे दूर तक फैली रेत पर अपने अंतिम निशान छोड़ जाने के लिए हम बहुत दूर तक चले आए। विशाल ने जूट के थैले में रखी बीयर की दोनों बोतलें निकाल लीं और हम एकांत में आती हुई लहरों के सम्मुख जा बैठे। अपनी चाबी के छल्ले में लगे ओपनर से विशाल ने बीयर का ढक्कन खोला और मेरी ओर बढ़ा दिया। अपनी-अपनी बोतलें थामे हम आती हुई लहरों को गिनने का विफल प्रयत्न करने लगे। बीयर धीरे-धीरे खत्म हो रही थी। इस बीच हमने गौर किया कि कुछ युवक और अधेड़ हम पर निगाहें रखे हुए हैं! न जाने कहां से आकर उन्होंने मानो हमें अपने घेरे में ले लिया था। दिखने में गरीब, कृशकाय- हम पर भारी। वे पांच थे और हम दो। उनकी निगाहें हम पर टिकी हुई थीं। बस, किसी मौके की तलाश में थे।
मैंने विशाल के चेहरे की ओर देखा। वहां हवाइयां उड़ रही थीं। मैं भी मन ही मन बहुत डर गया। गले में पड़ी सोने की चैन कॉलर में छिपाने की कोशिश की। विशाल ने धीरे से कहा, 'जितना पी सकते हो, पी लो। बोतल फेंको और यहां से खिसको। ’
मैं सुरूर में था। अपनी दायीं पेंट की जेब पर इस तरह हाथ मारा जैसे वहां पिस्तौल हो। पिस्तौल था नहीं। मोबाइल पर हाथ पड़ा। उसे निकालकर लहराते हुए उन्हें डपटा, 'क्या है? भागो यहां से। ’ वे सकपकाए और हमसे कुछ दूर हट गए, पर उनकी निगाह अब भी हम पर थी। मैंने बीयर का अंतिम घूंट भरते हुए कहा, 'विशाल, बोतल फेंको और भागो। ’
हमने बीयर की खाली बोतलों को वहीं रेत पर फेंका और अपने होटल की दिशा में तेजी से कदम बढ़ाने लगे। वहां से हटे ही थे कि देखा वे चारों छीना-झपटी करते हुए खाली बोतलों पर टूट पड़े हैं।

मंदिर-मस्जिद से भी बड़ा है ......


लघुकथा :इंडिया गेट



छात्रा से चलती बस में सामूहिक बलात्कार के मामले में न्याय की मांग में राजधानी के लोगों का व्यापक प्रदर्शन चल रहा था | सभी चैनलों पर पिछले दो दिनों से यही खबर लगातार प्रसारित हो रही थी | सामाजिक कार्यकर्ताओं, बुद्धिजीवियों, राजनेताओं के बाइट लिये जा रहे थे |
पर वह बहुत परेशान थी | उसने नारी-मुक्ति, नारी-अस्मिता, नारी-सुरक्षा आदि नारी-सम्बन्धी मसलों पर न सिर्फ ढेर सारी पुस्तकें लिखीं थीं
 बल्कि देश-विदेश में नारी-विषयक वक्तव्य भी देती आ रहीं थीं | परेशानी का सबब यह था कि अब तक किसी अख़बार या समाचार चैनल ने उनसे इस नृशंस बलात्कारी मसले पर राय जानने के लिए संपर्क नहीं साधा था |परेशान लेखिका ने अपनी एक चहेती पत्रकार का नम्बर मिलाया |
" कहो राधिका... कैसी हो ? कई दिनों से कोई खोज-खबर नहीं?"
" बस मैडम... समय नहीं मिल पाया |...... हाँ, यह तो बताइए, आप इंडिया गेट पहुंची या नहीं ?"
इस प्रश्न का उत्तर मिलने के पहले ही फोन कट गया |


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